*“गोचर भूमि की लाठी पूरे राजस्थान पर पड़ी है, नागौर के लाडपुरा से लेकर बांसवाड़ा तक!”*
जन जागृति संगम डेस्क न्यूज
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*राजस्थान की गोचर भूमि पर जो कब्ज़े हुए हैं, वह किसी एक पंचायत–समिति का नहीं बल्कि पूरे राज्य का सामूहिक प्रशासनिक पतन है।*
*नागौर ज़िले में लाडपुरा की 500 बीघा ज़मीन इसका ताज़ा उदाहरण है, लेकिन हर जिला अपनी-अपनी ‘लाडपुरा कथा’ वर्षों से झेल रहा है।*
*नागौर ज़िले में तो गोचर भूमि पर कब्ज़े इतने हैं कि लगता है मानो यह जिला राज्य का “पायलट प्रोजेक्ट” रहा हो—जहाँ राजस्व विभाग देखता रहा, और प्रभावशाली लोग ज़मीनें हड़पते गए।*
*लाडपुरा की गोचर भूमि पर अतिक्रमण सिर्फ़ ज़मीन का मामला नहीं है। यह राजस्थान के प्रशासन की रीढ़ टूट जाने का सार्वजनिक प्रमाण पत्र है। भूमि पर अतिक्रमण हटाने के आदेश अक्टूबर 2025 में जारी हुए थे, 15 अक्टूबर की आख़िरी तारीख तय की गई थी, पालना रिपोर्ट तहसील में जमा होनी थी—पर हुआ क्या?कुछ भी नहीं।जैसे आदेश नहीं, मजाक जारी किया गया हो।*
*यह कितना शर्मनाक है कि नायब तहसीलदार के लिखित निर्देश भी ज़मीन पर एक इंच हिला नहीं सकते।ये कैसा प्रशासन है जहाँ आदेश फ़ाइलों में गरजते हैं और ज़मीन पर चुपचाप दम तोड़ देते हैं?*
*ग्रामीण डेढ़ साल से घूम रहे हैं—कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदार, विधायक, सांसद, पोर्टल 181—किसी से कहीं मदद नहीं। पचास से ज़्यादा शिकायतें राजस्थान संपर्क पोर्टल पर भेज दी गईं, लेकिन लगता है 181 सिर्फ़ एक नंबर नहीं, सरकारी बहरेपन का टोल-फ्री प्रमाण है।*
*और सबसे घातक बात कब्ज़ा हटाने के आदेश होने के बावजूद कब्ज़ा जस का तस।इससे साफ़ है कि सरकारी मशीनरी को प्रभावित करने की ताक़त किसके पास है गाय-भैंस पालने वाले ग्रामीणों के पास नहीं, बल्कि कब्ज़ा जमाए बैठे उन लोगों के पास, जिनकी पकड़ राजनीति और राजस्व दोनों पर भारी है।*
*राजस्थान में गोचर भूमि की दुर्गति कोई नई कहानी नहीं है, लेकिन लाडपुरा वाला मामला यह साबित करता है कि प्रशासन अब “कार्रवाई” शब्द की हत्या कर चुका है।*
*गौशालाओं को अनुदान बांटकर सरकार वाहवाही ज़रूर लेती है, लेकिन जब गायों के घूमने-चरणे की असली जमीन बचाने की बारी आती है, तो सरकार और प्रशासन दोनों विलुप्त हो जाते हैं।*
*पशुपालक और गौचर संचालक रोज़ परेशान हों, किसान हज़ारों की दूरी पर मवेशी लेकर जाएँ, निर्बल पशु सड़कों पर मरें पर कब्जेदारों की एक दीवार भी न टूटे।क्योंकि यहाँ कानून नहीं चलता, कब्ज़ेदारों का रसूख चलता है।*
*और हाँ, प्रशासन को एक बात साफ़ समझ लेनी चाहिए कि जिस दिन ग्रामीणों का धैर्य जवाब देगा, उस दिन यह मामला सिर्फ़ गोचर का नहीं, पुलिस–प्रशासन की नींद उड़ा देने वाला मसला बन जाएगा।क्योंकि जनता बेवकूफ़ नहीं है; वह सब जानती है कि आदेश इसलिए नहीं रुके कि समय कम था वे इसलिए रुके क्योंकि कब्ज़ेदार बड़े थे और प्रशासन छोटा।*
*सरकार के लिए यह* *आख़िरी चेतावनी होनी चाहिए कि लाडपुरा की गोचर भूमि पर कार्रवाई करो, वरना जनता यह मान लेगी कि राजस्थान में कानून नहीं!कब्ज़ा–संस्कृति ही असली सरकार है।*

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