*सांवलिया की पोशाख कला,सौंदर्य, संस्कृति, परंपरा, और भक्ति का मिलन* *सावलियां जी को सोना-चांदी की ड्रेस ग्यारस को धारण करेंगे*

जन जागृति संगम 



नीमच। चित्तौडगढ जिले के मंडपिया में स्थित सांवलिया सेठ के प्रख्यात मंदिर में विराजित भगवान सांवलिया सेठ अपने अदभुत श्रृंगार से भक्तों का मन मोह लेते हैं। यह मंदिर इन दिनों लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का एक महान केंद्र बन गया हैं। उनके प्रति भक्तों की अपार श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है उनकी दिव्य स्वर्ण मढित पोशाख और आभूषण, जो कुशल स्वर्ण कलाकार संजय वर्मा द्वारा निर्मित किए जाते रहे हैं। 



इसी क्रम मंे यह पोशाख भी उन्हीं के द्वारा निर्मित की गई है और चैत्र बदी दशम को अर्पित करने के उपरांत चेत्र बदी ग्यारस को सांवलिया जी धारण करेंगे।
नीमच निवासी एक भक्त का भगवान सांवलिया से गहरा लगाव हो गया तो भक्त ने शिल्प कलाकार संजय वर्मा से संपक साधा। भक्त ने संजय को सांवलिया सेठ की स्वर्ण पोशाख की एक अनुपम कलाकृति बनाने के लिए विनय किया। जिस पर संजय ने यह पोशाख तैयार की है। सोने की चमक से आलोकित भगवान सांवलिया की पोशाख में कलाकार संजय के हस्तशिल्प में बारीक कारीगरी का भी अनोखा संगम देखने को मिलता है। यह पोशाख अत्यंत सूक्ष्मता से तैयार की गई है, जिसमें महीन नक्काशी, जटिल डिजाइन और भगवान की दिव्यता को और बढ़ाने वाली अलंकरण शैली अपनाई गई है।
*संजय उवाच*
संजय के अनुसार पोखाश के साथ ही तलवार, ढाल, मुकुट, कुंडल, भावमंडल व मोर पंख और खालिस चांदी की चरण पादुका भी बनाई है। श्री वर्मा ने बताया कि पोशाख निर्माण में कुल चार किलो दो सौ तरालिस ग्राम चांदी का उपयोग किया गया है। सभी आभूषण बनाने में लगभग तीन माह का समय लगा है। सुंदरता में वैभवता के लिए नगीनों एवं मीनाकारी भी की गई है।
स्वर्ण शिल्पी का आधारण कौशल और समर्पण
सांवलिया सेठ के लिए स्वर्ण पोशाख और आभूषण तैयार करने वाले संजय वर्मा स्वर्णकारी कला में निष्णात हैं। उनके हाथों में ऐसी प्रतिभा है कि जो ठोस धातु को भी जीवंत बना देती है। महीन जड़ाई, पारंपरिक कला शैली, और बारीक नक्काशी के साथ वे अपने कार्य को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से संपन्न करते हैं।
स्वर्ण आभूषणों की शिल्पकारी
श्री वर्मा ने इसके पहले भी सांवलिया सेठ के लिए विभिन्न प्रकार के स्वर्ण आभूषण बनाए हैं, जिनमें मुकुट, कान के कुंडल, हाथों के कंगन, कमरबंध, पायजेब, हार आदि शामिल हैं। इन सभी आभूषणों में सोने की चमक के साथ-साथ प्रेम और भक्ति की भावना भी पिरोई गई है। इन आभूषणों की डिजाइन में प्राचीन भारतीय शैली और आधुनिक नक्काशी का मिश्रण देखने का प्रयास श्री वर्मा द्वारा किया जाता है, जिससे पोशाख और आभूषण ओर अधिक अद्वितीय बन जाते हैं।
कलाकारों का योगदान और सम्मान
स्वर्ण कलाकार संजय अपनी कला को केवल एक पेशा नहीं, बल्कि भक्ति का एक रूप मानते हैं। वे अपने कार्य में अद्भुत धैर्य और समर्पण का परिचय देते हैं, जिससे हर आभूषण और पोशाख में दिव्यता और पवित्रता का संचार होता है। ऐसे स्वर्ण कलाकारों की कला केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा, और भक्ति का जीवंत उदाहरण भी है।
सांवलिया सेठ की स्वर्ण पोशाख और आभूषण केवल एक धातु का रूप नहीं, बल्कि श्रद्धा और कला की संपूर्णता का प्रतीक हैं। इसमें संजय का योगदान अतुलनीय है, जो न केवल भक्तों की आस्था को और दृढ़ करता है, बल्कि भारतीय स्वर्णकारी कला की गरिमा को भी बढ़ाता है।
स्वर्णकारी कला में निपुण संजय वर्मा न केवल सांवलिया सेठ के लिए, बल्कि अन्य कई प्रसिद्ध मंदिरों के लिए भी भव्य पोशाख एवं आभूषण निर्माण कर चुके हैं। उनके द्वारा निर्मित स्वर्ण अलंकरण न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक होते हैं, बल्कि भारतीय शिल्पकला की गौरवशाली परंपरा को भी आगे बढ़ाते हैं। संजय वर्मा ने विभिन्न मंदिरों में भगवान की मूर्तियों के लिए विशेष रूप से डिजाइन की गई पोशाखें और आभूषण तैयार किए हैं। संजय वर्मा की स्वर्णकारी कला में पारंपरिक एवं आधुनिक डिजाइनों का अद्भुत मिश्रण, स्वर्ण के साथ रत्न, कुंदन एवं जरी का अनोखा उपयोग, भगवान की मूर्ति के अनुरूप कस्टम डिजाइनों का निर्माण और हर आभूषण में भक्ति, कला और संस्कृति का गहरा समावेश भी है। संजय वर्मा का योगदान केवल एक कुशल स्वर्णकार के रूप में नहीं, बल्कि एक श्रद्धालु कलाकार के रूप में भी महत्वपूर्ण है। उनकी कला न केवल मंदिरों की शोभा बढ़ाती है, बल्कि भक्तों की आस्था को भी और अधिक सशक्त बनाती है। उनके द्वारा निर्मित पोशाखें और आभूषण भारतीय धार्मिक संस्कृति की भव्यता और सौंदर्य को दर्शाते हैं, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।

टिप्पणियाँ

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