वैष्णव धर्म प्रचारक श्री रामानंदाचार्य की जयंती मनाई गई*
*जन जागृति संगम न्यूज़*
नीमच
ड्रा बबलु चौधरी
रामानंदाचार्य यह वह नाम है
जो राघवानंद सुखानंद कबीर दास जैसे महान संतों में से एक है
इनका जन्म 1300 शताब्दी सन 1299 माघ माह कृष्ण सप्तमी को प्रयागराज माल कोट में गौड़ ब्राह्मण रत्न के रूप में ब्राह्मण परिवार में हुआ जिन की माता का नाम श्रीमती सुशीला देवी एवं पिता का नाम पुण्य सदन शर्मा था
श्री रामानंदाचार्य मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के संतो में से एक प्रमुख संत माने जाते हैं
उन्होंने राम भक्ति धारा को निचले स्तर तबके तक पहुंचाया है
उन्होंने तत्कालीन समाज के व्याप्त कुरीतियां जैसे छुआछूत छूत अछूत ऊंच-नीच और जात पात का खुल कर विरोध किया
विष्णु के उपासक एवं राम सीता उनके आराध्य रहे
उनके आराध्य रहे
वैष्णव धर्म के प्रचारक होने के साथ-साथ उन्होंने इस्लामी शासन के अत्याचार से भारत के सनातन धर्म के तीर्थ स्थलों को भी रक्षा दी एवं उनकी नागा मंडलियों ने भी अपने शौर्य वीरता का परिचय दिया
सामाजिक एकता संगठन बनाए रखने के लिए दूसरे नंबर पर हिंदी को श्री रामानंदाचार्य ने महत्व दिया
प्रखर पंडित होने के साथ-साथ रामानुजाचार्य चमत्कारी भी रहे
इनका एक चमत्कार देखकर जोधपुर नरेश भी उनके के चरणों में लेट गए थे
श्री रामानंदाचार्य ने सन 1410 या 1461 संवत 111 वर्ष की आयु में शरीर से आत्मा को मुक्त कर लिया
लेकिन आज भी उनपे ओर उनके बनाए गए सिद्धांतों पर वैष्णव धर्म उपासक को गर्व है
ओर सदियों से चली आ रही इस रामानंदाचार्य जयंती की परंपरा को वैष्णव धर्म के बंधुओं द्वारा नीमच में प्रतिवर्ष मनाई जाती रही है
लेकिन बड़े दुख की बात है के जिस धर्म के लिए महान संत श्री रामानंदाचार्य एक बड़े प्रचारक के रूप में सामने आए और उन्होंने वैष्णव धर्म के प्रचार को जो देश में बढ़ावा दिया
आज उसी वैष्णव धर्म के उपासक वैष्णव बैरागी समाज की नीमच में दो अलग-अलग स्थानों एवं अलग-अलग दिन समय और दिनांक पर जयंती मनाते हुए देख पूरा शहर आश्चर्यचकित रह गया हैं
और शहर में एक चर्चा का माहौल बन गया
हो सकता है कुछ सामाजिक परिस्थितियां रही हो
यह भी हो सकता है के विचारों में असमंजस की स्थिति रही हो
यह भी मान लिया जाता है की गुटबाजी की स्थिति बनी हो
लेकिन हमारे धर्म प्रचारक जहां एक है जिन्होंने हमें संगठन और एकता का उपदेश दिया है उन्ही के उपदेशों का सामाजिक वरिष्ठ एवं विशेष सम्मानीय व्यक्तियों द्वारा बटवारा होते हुए देख सामाजिक फूट को दर्शाती है
किसी ने कहा है कि अपने घर में एक कोने में बैठ कर रो लेना परंतु दरवाजा हमेशा मुस्कुरा कर ही खोलना
लेकिन यहां तो परिस्थितियां परिवार की कुछ अलग ही नजर आ रही है
वैसे तो रामानंदाचार्य का जन्म एक ही समय दिन तिथि एवं स्थान पर हुआ है वह भी कृष्ण माघ माह सतमी तिथि पर
लेकिन यहां पर तो वैष्णव धर्म के उपासक बैरागी समाजों ने समाज का तो बटवारा कर ही रहे हे इनके जन्मतिथि को अपनी-अपनी विचारधारा अनुरूप बंटवारे में परिवर्तित कर रामानंदाचार्य जयंती को मनाया
एक दिनांक 15 जनवरी 2023 को एवं दूसरी 23 जनवरी 2023 को
एक ही सामाजिक बंधुओं ने अलग-अलग दिनांक समय एवं स्थान को परिवर्तन कर नीमच शहर में रामानंदाचार्य जयंती को मनाया
एवं शोभायात्रा भी निकाली गई
लेकिन वही शोभायात्रा इनो की शोभा में चार चांद लगाते हुए दिखाई दे रही है इस पर हर सामाजिक बंधु अपनी अपनी प्रतिक्रिया अपने स्तर से दे भी रहे हैं और देंगे भी सही लेकिन यह मात्र चर्चा का विषय ही नही हे सोच का विषय हे
यह कटु सत्य है की जहां हनुमान जयंती रामनवमी कृष्ण जन्माष्टमी यह सब जयंतिया यदि एक ही तिथि को मनाई जाती है
तो फिर रामानंदाचार्य जयंती पर इतना बदलाव क्यों
सामाजिक बंधुओं से एवं युवाओं से यह अपेक्षा है आने वाले समय में इस रामानंदाचार्य जयंती पर अपनी एकता का परिचय देते हुए शहर को एक नया संदेश दे
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