*अमर शहीद हेमू कालाणी के 102 वें जन्म जयंती पर विशेष -* *साहस का दूसरा नाम "हेमू कालाणी"* *अमर शहीद हेमू कालाणी युवाओं के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रहे, जिन्हें बचपन से मिले देशभक्ति के संस्कार*

जन जागृति संगम न्यूज 


अखंड भारत का सिंध प्रांत वैसे तो सूफियाना अंदाज एवं आध्यात्म के लिए जाना जाता है। परंतु, सिंध प्रांत में व्यापार भी बहुत उन्नत स्तर पर होता रहा है एवं प्राचीन भारत में सिंध प्रांत के निवासी सामान्यतः सुखी, समृद्ध एवं सम्पन्न रहे हैं। साथ ही, भारत माता को अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने में सिंधवासियों का भरपूर योगदान भी रहा है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले सैकड़ों सिंधवासियों के नाम बहुत आदर के साथ लिए जाते हैं परंतु मुख्यतः इस सूची में शामिल नाम हैं - शहीद हरकृष्ण, शहीद संत कंवरराम, वीर हासाराम पमनानी, श्रीकिशन माटा, नेभनदास फतनानी, तेजूमल बालानी, सच्चा नन्द फेरुमल थावानी, आदि। सिंध के कई स्वतंत्रता सेनानियों ने तो इस पावन यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति भी दे दी थी।
 *भारत के इन्हीं वीर सपूतों में अमर शहीद हेमू कालाणी का नाम भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है क्योंकि उन्हें बहुत ही कम उम्र, मात्र 19 वर्ष की आयु में दिनांक 21 जनवरी 1943 को क्रूर अंग्रेजी शासन द्वारा फांसी दे दी गई थी।*
 


अमर शहीद हेमू कालाणी का जन्म अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के सक्खर में 23 मार्च 1923 को हुआ था। हेमू कालाणी के पिता का नाम श्री पेसूमल कालाणी, माता का नाम श्रीमती जेठीबाई कालाणी था।  जब हेमू कालाणी की आयु मात्र सात वर्ष की थी, तब इस अल्पआयु में भारतमाता का तिरंगा लेकर अपने मित्रों के साथ अंग्रेजों की बस्ती में जाकर निर्भीक होकर भारत माता को परतंत्रा की बेड़ियों से मुक्त कराने की दृष्टि से की जा रही सभाओं की व्यवस्थाओं में उत्साहपूर्व भाग लेते थे। हेमू कालाणी अपनी पढ़ाई-लिखाई पर भी पूरा ध्यान देते हुए एक अच्छा तैराक तथा धावक बनने का प्रयास कर रहे थे। तैराकी की कई प्रतियोगिताओं में तो वे कई बार पुरस्कृत भी हुए थे। बचपन से ही हेमू कालाणी एक कुशाग्र बुद्धि के बालक थे।  हेमू कालाणी अपने बचपन काल से ही राष्ट्रवाद की भावना से भी ओतप्रोत थे एवं अपनी किशोरावस्था में ही विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का आग्रह विभिन्न ग्रामों में निवास कर रहे नागरिकों से करते थे एवं उस समय पर भी सिंध प्रांत के नागरिकों में स्वावलम्बन का भाव जगाने का प्रयास कालाणी द्वारा किया जा रहा था। कुछ समय बाद तो हेमू कालाणी ने अंग्रेजों की क्रूर हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प ही ले लिया था और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रियाकलापों में भी भाग लेना शूरू कर दिया था। अत्याचारी अंग्रेजों द्वारा संचालित सरकार के विरुद्ध छापामार गतिविधियों में भाग लेकर उनके वाहनों को जलाने में हेमू कालाणी अपने साथियों का नेतृत्व भी करने लगे थे। यह भी एक अजीब संयोग ही कहा जाएगा कि हेमू कालानी की जन्मतिथी एवं अमर शहीद भगतसिंह जी की पुण्यतिथी एक ही है, अर्थात 23 मार्च।
जब गांधीजी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया, तो यह स्वतंत्रता संग्राम का समय था। हेमू कालाणी, जो इस आंदोलन से बहुत प्रभावित थे और अपने चाचा से प्रेरित थे, स्वराज सेना नामक क्रांतिकारी समूह में शामिल हो गए और इसके शीर्ष अधिकारी बन गए। इस समूह ने अपनी एक गुप्त बैठक के दौरान एक “क्रांतिकारी कमान” की स्थापना की, जिसका सक्खर, जंजीरों से मुक्त कराने के लिए कुछ साहसी क्रांतिकारी गतिविधियाँ करना था।
उनकी उम्र के लोग शायद ही कभी देश के लिए कुछ करने के बारे में सोचते हों, लेकिन यहां एक ऐसा छात्र था जो मैट्रिक की परीक्षा देने वाला था और जो अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध था। चूंकि हेमू कालाणी अपने बचपन काल से ही सिंध प्रांत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सम्पर्क में रहे थे अतः एक बार वर्ष 1942 में उन्हें अपने साथियों के माध्यम से यह गुप्त जानकारी मिली कि बलूचिस्तान में चल रहे उग्र आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से 23 अक्टोबर 1942 की रात्रि में अंग्रेजी सेना, हथियारों एवं बारूद से भरी, रेलगाड़ी में सिंध प्रांत के रोहड़ी शहर से होकर सक्खर शहर से गुजरती हुई बलूचिस्तान के क्वेटा शहर की ओर जाने वाली है। प्राप्त हुई इस गुप्त सूचना के आधार पर हेमू कालाणी ने अपने कुछ साथियों को इकट्ठा कर आनन फानन में एक योजना बनाई कि किस प्रकार रेल की पटरियां उखाड़कर इस रेलगाड़ी को गिराया जाए ताकि अंग्रेजी सेना का भारी नुकसान हो सके। बस फिर क्या था, रात्रि काल में अत्यंत गुपचुप तरीके से कुछ साथी मिलकर उस स्थान पर पहुंच गए जहां रेल की पटरियों को नुकसान पहुंचाने का निर्णय लिया गया था। वहां पहुंचकर उन्होंने रिंच और हथौड़े की सहायता से रेल की पटरियों की फिशप्लेटों को उखाड़ने का कार्य प्रारम्भ कर दिया। परंतु पास ही में पुलिस की एक टुकड़ी पहरा दे रही थी। उन्होंने रेल की पटरियों पर किए जा रहे प्रहार की आवाजें सुन लीं और वे तुरंत वहां पहुंच गए। जिस स्थान पर हेमू कालाणी अपने साथियों के साथ रेल के पटरियों को नुकसान पहुंचाने का कार्य कर रहे थे। पुलिस को आते देख हेमू कालाणी के दो साथी तो भाग खड़े हुए परंतु हेमू कालाणी पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए। 
हेमू कालाणी पर कोर्ट में केस चलाया गया और इस कोर्ट में जब जब भी उनसे पूछा गया कि आपके साथ और कौन से साथी थे तो उन्होंने कोर्ट में जवाब दिया कि मेरे साथी तो केवल रिंच और हथौड़ा ही थे। सक्खर की कोर्ट ने हेमू कालाणी को, उनकी मात्र 19 वर्ष की अल्पायु होने के कारण, देशद्रोह के अपराध में आजीवन कारावास की सजा प्रदान की। जब उक्त निर्णय को अनुमोदन के लिए हैदराबाद (सिंध) स्थित सेना मुख्यालय में भेजा गया तो सेना मुख्यालय के प्रमुख अधिकारी कर्नल रिचर्डसन ने हेमू कालाणी को ब्रिटिश राज का खतरनाक शत्रु मानते हुए उनकी आजीवन कारावास की सजा को फांसी की सजा में परिवर्तित कर दिया। हेमू कालाणी की अल्पायु को देखते हुए सिंध के गणमान्य नागरिकों ने कोर्ट में एक पिटीशन फाइल की एवं अंग्रेज वायसराय से आग्रह किया कि हेमू कालाणी को दी गई फांसी की सजा को निरस्त किया जाय। अंग्रेज वायसराय ने इस आग्रह को एक शर्त के साथ स्वीकार किया कि हेमू कालाणी रेल के पटरियों को नुकसान पहुंचाने वाले अपने अन्य साथियों के नाम अंग्रेज प्रशासन को बताएं। परंतु, हेमू कालाणी ने वायसराय की इस शर्त को नकारते हुए खुशी खुशी फांसी पर चढ़ जाना बेहतर समझा और इस प्रकार 21 जनवरी 1943 को प्रातः सात बजकर 55 मिनट पर अंग्रेजों द्वारा श्री हेमू कालाणी को फांसी दे दी गई। हेमू कालाणी ने 'इंकलाब-जिंदाबाद' और 'भारत माता की जय' के नारे लगाते हुए खुद अपने हाथों से फांसी का फंदा अपने गले में डाला, मानो वे फूलों की माला पहन रहे हों। जब फांसी दिए जाने के पूर्व हेमू कालाणी से उनकी अंतिम इच्छा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने मां भारती की गोद में पुनः जन्म लेने की इच्छा प्रकट की।


मात्र 19 वर्ष की आयु में अमर शहीद हेमू कालाणी का प्राणोत्सर्ग सदैव याद रखा जाएगा एवं अंग्रेजो को भारत से भगाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जिन हजारों वन्दनीय वीरों को जब जब याद किया जाएगा तब तब उनमें सबसे कम उम्र के बालक क्रांतिकारी अमर शहीद श्री हेमू कालाणी को भी सदैव याद किया जाएगा।
अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के वीर योद्धा अमर शहीद श्री हेमू कालाणी की अक्षुण याद बनाए रखने के उद्देश्य से एवं उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए उनकी एक आदमकद प्रतिमा स्वतंत्र भारत की संसद में स्थापित की गई है एवं भारत सरकार द्वारा उनकी स्मृति में एक डाक टिकट भी जारी किया गया है।
इस पुष्प को पुष्पित करने का कार्य सरदार भगत सिंह की फांसी ने किया।
हेमू के हृदय में देशभक्ति का पुष्प खिल चुका था। एक तरफ 23 मार्च, 1931 सरदार भगत सिंह की फांसी का दिन था तो दूसरी तरफ बालक हेमू का आठवां जन्मदिन। मात्र आठ वर्ष का बालक मिठाई अथवा खिलौनों की ओर आकर्षित नहीं था। वह तो भगत सिंह का अनुकरण करते हुए रस्सी का फंदा बनाकर शहीद होने का अभ्यास कर रहा था। उसी समय मां ने हेमू से पूछा, ‘बेटा यह क्या कर रहे हो?’ हेमू ने राष्ट्रभक्ति भाव से उत्तर दिया ‘मां! मैं भी फांसी पर चढ़ूंगा।’ हेमू की मां ने इसे लड़कपन समझा था किंतु माता-पिता को यह कहां ज्ञात था कि उनका हेमू एक दिन वास्तव में भारत मां को स्वतंत्र कराने के लिए फांसी के फंदे को चूमेगा और बलिदान हो जाएगा।
*भारत के ऐसे सपूत वीर अमर "शहीद हेमू कालाणी" को उनकी 102 वें जन्मोत्सव पर शत शत नमन....*🙏

                                 
*लोकेन्द्र फतनानी* 
मीडिया प्रभारी 
पूज्य सिंधी पंचायत नीमच

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